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उस पार

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क्या तुम मुझे मिलोगे उस पार ? जीवन और मृत्यु से परे, इस दुःख, सुख से परे, इस सामाजिक बंधनों से परे, क्या तुम मेरा इंतज़ार करोगे उस पार ? क्या है उस पार ? क्या ये एक उम्मीद है कि तुम वहाँ हो, एक दिन मुझसे मिलने का इंतज़ार कर रहे हो, जैसे इस उम्मीद में मैं जी रही हूँ, कि इस जीवन और मृत्यु से परे मैं तुम्हें देख पाऊँगी। मैं तुम्हारी मुस्कुराहट देख पाऊँगी। जहाँ कोई गिले शिकवे नहीं होंगे। ना तुमसे, ना ख़ुद से। क्या तुम मेरा इंतज़ार करोगे उस पार ? तब तक मैं जी लेती हूँ। तब तक बाकी काम पूरे कर लेती हूँ। कुछ तुम्हारे, कुछ मेरे। कुछ तुम्हारी इच्छाएँ, कुछ मेरी इच्छाएँ। मैं इस दुनियाँ का आनंद ले लेती हूँ और तुम्हें याद कर लेती हूँ। पर हाँ जब ये ख़त्म हो जाएगा, जिस दिन मेरा भी अंत आयेगा, क्या तुम मिलोगे मुझे उस पार ?

क्या हुआ।

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क्या हुआ जो आज मैं थोड़ा गम्भीर हूँ, यह पल है मेरा और मैं ख़ुशनसीब हूँ। यह पल तो निकल जायेगा, पर कुछ सिखा जायेगा। क्या हुआ जो आज मैं ग़मगीन हूँ, यह पल मुझे एहसास दिलाता है, क्या कुछ सुधार अभी बाकी है मुझमें, क्या कुछ निखारना बाकी है अभी। क्या हुआ जो आज मैं थोड़ा ठहराव हूँ, यही मुझे जीवित रख रहा है, इसी ठहराव में अनगिनत लहरें समानी हैं। क्या हुआ जो आज मैं थोड़ा विचलित हूँ, इसी का नाम तो जिंदगानी है।